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(१०३) जो कहुं हुं अनेरी री॥मे॥३॥
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॥पद बासठमुं॥राग मारु॥ पीया बिन सुधबुध खूदी हो, विरद नुयंग निसा समे, मेरी सेजडीखूदी दो॥पी०॥२॥ नोयण पान कथा मिटी, किसकुं कहुं सूधी दो॥
आजकाल घर आनकी, जीव आस विबुझी हो।पी॥श वेदन विरदेअथाद है,
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