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(१०१) कहा करुं जन रंजन॥
अब०॥ खंजन हगन हगन लगाएँ, चाढू न चिंतवन अंजन॥ संजन घट अंतर परमातम, सकल उरित नय जन ॥
अब०॥ ॥ एह कामगवि एद कामघट, एही सुधारस मंजन॥ आनंदघन प्रज्जु घटवनके हार, काम भतंग गज गंजन ॥ ३
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