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मेरो विरद व्यथा अकुलातगात
॥प्यारे॥१॥ एक पेसाजर न लावे नाज, न नूषण नहीं पट समाज
प्यारे ॥२॥ मोदन रास न दूसत तेरी आसी, मदनो जय है घरकी दासी
॥प्यारे॥३॥ अनुभव जादके करो विचार, कद देखे है वाकी तनमें सार
प्यारे ॥४॥
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