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(ए) पाहाणको नार कांही उगवत, एक तारेका चोलादेखो॥३॥ षट्पद पदके जोगसिरिखस, क्यों कर गजपद तोला ॥ आनंदघन प्रनु आय मिलो तुम, मिट जाय मनका कोला॥
देखो ॥४॥
॥पद अगवनमुंगराग वसंत। प्यारेआय मिलोकदायेंतें जात,
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