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________________ श्री लोकाशाह मत-समर्थन 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米类米米米米米米米米米米米 एक तरफ तो ये लोग किसी प्रकार के विधान बिना ही मूर्ति पूजा करने से बारहवां स्वर्ग प्राप्त होने का फल विधान करते हैं। और दूसरी तरफ श्रेणिक राजा को सदैव १०८ स्वर्ण जौ से पूजने की कथा भी कहते हैं, इस हिसाब से तो श्रेणिक को स्वर्ग प्राप्ति होनी ही चाहिये। जब कि मामूली चावलों से पूजने वाला भी स्वर्ग में चला जाता है तो स्वर्ण जौ से पूजने वाला देवलोक में जाय इसमें आश्चर्य ही क्या? किन्तु हमारे प्रेमी पाठक यदि आगमों का अवलोकन करेंगे या इन्हीं मूर्तिपूजक बन्धुओं के मान्य ग्रन्थों को देखेंगे तो आप श्रेणिक को नरक गमन करने वाला पायेंगे? इसी से तो ऐसे कथानक की कल्पितता सिद्ध होती है। इन के मान्य ग्रन्थकार ही यह बतलाते हैं कि जब प्रभु महावीर ने श्रेणिक को यह फरमाया कि यहां से मरकर तुम नरक में जावोगे, तब यह सुनकर श्रेणिक को बड़ा दुःख हुआ उसने प्रभु से नरक निवारण का उपाय पूछा, प्रभु ने चार मार्ग बताये। १. नौकारसी प्रत्याख्यान स्वयं करें २. कपिला दासी अपने हाथों से मुनि को दान देवे, ३. कालसौरिक कसाई नित्य ५०० भैंसे मारता है एक दिन के लिए भी हिंसा रुकवादे, ४. पूणिया श्रावक की एक सामायिक खरीद ले, इस प्रकार चार उपाय बताये, किन्तु इनमें मूर्ति पूजा कर नरक निवारण का कोई मार्ग नहीं बताया। क्या प्रभु को भी मूर्तिपूजा का मार्ग नहीं सूझा? बारहवां नहीं तो पहला स्वर्ग ही सही। इसे भी जाने दीजिये, पुनः मानव भव ही सही। इतना भी यदि हो सकता तो प्रभु अवश्य मूर्तिपूजा का नाम इन चार उपायों में, या पृथक् पांचवां उपाय ही बतलाकर सूचित करते किन्तु जब मूर्ति-पूजा उपादेय ही नहीं तो बतलावे कहां से, अतएव स्पष्ट सिद्ध हो गया कि नियुक्ति के नाम से यह कथन केवल काल्पनिक ही है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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