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________________ आवश्यक नियुक्ति और भरतेश्वर ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ प्रदेशी राजा ने अपने भयंकर पापों का नाश केवल, दया दान त्याग वैराग्य, तपश्चर्या आदि द्वारा ही किया है, उसने भी अपने स्वर्ग गमन के लिए किसी मन्दिर का निर्माण नहीं कराया, न मूर्ति ही स्थापित की, न कभी पूजा आदि भी की। - सुमुख गाथापति केवल मुनिदान से ही मानवभव प्राप्त कर मोक्ष मार्ग के सम्मुख हुआ, मेघकुंवर ने दया से ही संसार परिमित कर दिया, इसी प्रकार मेतार्य मुनि, मेघरथ राजा आदि के उदाहरण जगत् प्रसिद्ध ही है, तपश्चर्या से धन्ना अनगार आदि अनेक महान् आत्माओं ने सुगति लाभ की है, यहाँ तक कि अनेक निरपराध नरनारियों की राक्षसी हिंसा कर डालने वाला अर्जुन माली भी केवल छह माह में ही उपार्जित पापों का नाश कर मोक्ष जैसे अलभ्य और शाश्वत सुख को प्राप्त कर लेता है। भव भयहारिणी शुद्ध भावना से भरतेश्वर सम्राट ने सर्वज्ञता प्राप्त कर ली, ऐसे धर्म के चार मुख्य एवं प्रधान अंगों का आराधन कर अनेक आत्माओं ने आत्म-कल्याण किया है किन्तु मूर्ति पूजा से भी किसी की मुक्ति हुई हो, ऐसा एक भी उदाहरण उभयमान्य साहित्य में नहीं मिलता, यदि कोई दावा रखता हो तो प्रमाणित करे। ___ इस स्वर्ण जौ की कहानी से तो महानिशीथ का फल विधान असत्य ही ठहरता है, क्योंकि-महानिशीथकार तो सामान्य पूजा से भी स्वर्ग प्राप्ति के फल का विधान करते हैं और स्वर्ण जौ से नित्य पूजने वाला श्रेणिक राजा जाता है नरक में, यह गड़बड़ाध्याय नहीं तो क्या है? अतएव भरतेश्वर और श्रेणिक के मूर्ति-पूजन सम्बन्धी कल्पित कथानक का प्रमाण देने वाले वास्तव में अपने हाथों अपनी पोल खुली करते हैं, ऐसे प्रमाण फूटी कौड़ी की भी कीमत नहीं रखते। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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