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आवश्यक नियुक्ति और भरतेश्वर
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8. आवश्यक नियुक्ति और
भरतेश्वर प्रश्न - आवश्यक नियुक्ति में लिखा है कि चक्रवर्ती भरतेश्वर ने अष्टापद पर्वत पर चौवीस तीर्थंकरों के मन्दिर बना कर मूर्ति स्थापित की* इसी प्रकार श्रेणिक आदि अन्य श्रावकों ने भी मन्दिर बना कर मूर्ति-पूजा की है, इसे आप क्यों नहीं मानते? क्या इसी कारण से आप ३२ सूत्र के सिवाय अन्य सूत्रों और मूल के सिवाय टीका नियुक्ति आदि को नहीं मानते हैं?
उत्तर - महाशय! क्या आप इसी बल पर मूर्ति पूजा को धर्म का अंग और प्रभु आज्ञा युक्त मानते हैं? क्या आप इसी को प्रमाण कहते हैं? आपका यह प्रमाण ही प्रमाणित करता है कि मूर्ति-पूजा धर्म का अंग और प्रभु आज्ञा युक्त नहीं हैं, वास्तव में तो यह आगम प्रमाण का दीवाला ही है।
हम आप से सानुनय यह पूछते हैं कि आपका और नियुक्तिकार का यह कथन आवश्यक के किस मूल पाठ के आधार से है? जब कोई आपसे पूछेगा कि जिस आवश्यक की यह नियुक्ति कही जाती है उस आवश्यक के मूल में संक्षिप्त रूप से भी इस विषय में कहीं
* चक्रवर्ती भरतेश्वर के द्वारा अष्टापद पर्वत पर २४ तीर्थंकरों के मन्दिर बना कर मूर्ति स्थापित करना आगम विरुद्ध है क्योंकि भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशक ह में जहाँ प्रयोग बंध का अधिकार है वहाँ स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी मकान, देवालय, प्रासाद आदि का प्रयोग बंध ज० अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट संख्यात काल बतलाया है जबकि भरतेश्वर को हुए असंख्यातकाल हो चुका है अतः अष्टापद पर्वत एवं उस पर मंदिर बनाने का कथन अपने आप में बोगस एवं भगवती सूत्र के उक्त मूल पाठ से विपरीत है।
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