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श्री लोकाशाह मत - समर्थन
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कुछ जैनेत्तर विद्वानों के अर्थ भी देखिये -
(क) शब्द स्तोभ महानिधि कोष में
ग्रामादि प्रसिद्धे महावृक्षे, देवावासे जनानां सभास्थतरो, बुद्ध भेदे, आयतने, चिता चिन्हे, जनसभायां यज्ञस्थाने, जनानां विश्राम
स्थाने, देवस्थाने च।
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(ख) हिंदी शब्दार्थ पारिजात (कोष) में - (पृष्ठ २५२) देवायतन, मसजिद, गिर्जा, चिता गामका पूज्यवृक्ष मकान, यज्ञशाला, बिलीवृक्ष बौद्ध संन्यासी, बोद्धों का मठ ।
(ग) भागवत पुराण स्कन्ध ३ अध्याय २६ में 'अहंकार स्ततो रुद्रश्चित्तं चैत्य स्तनोऽभवत'
अर्थात् - अहंकार से रूद्र, रूद्र से चित्त, चित्त से चैत्य अर्थात्-आत्मा हुआ।
चैत्य शब्द का मंदिर व मूर्ति यह अर्थ प्राचीन नहीं किंतु आधुनिक समय का है, ऐसा मूर्ति पूजक विद्वान् पं० बेचरदासजी ने अनेक प्रबल प्रमाणों से सिद्ध किया है। ( 'देखो जैन साहित्यमां विकार थवाथी थयेली हानी' नामक निबन्ध) ये लोग कब से और किस प्रकार मूर्ति अर्थ करने लगे हैं यह भी पण्डितजी ने स्पष्ट कर दिया है, इस निबन्ध को सम्यक् प्रकार से पढ़कर अपने हठ को छोड़ना चाहिये और यह पक्का निश्चय कर लेना चाहिये कि धार्मिक विधि का विधान किसी के कथानक या शब्दों की ओर से नहीं किया जाता किन्तु खास शब्दों में किया जाता है।
इत्यादि प्रमाणों पर से हम इन मूर्ति पूजक बन्धुओं से ही कहते हैं कि - कृपया अभिनिवेश को छोड़कर शुद्ध हृदय से विचार करें और सत्य अर्थ को ग्रहण कर अपना कल्याण साधें ।
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