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चैत्य-शब्दार्थ 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米类米米米米米米米米米米米米米米米米米米
दुह विवागाणं णगराइ उज्जाणाई चेइयाइ।
क्या इस मूल पाठ में आये हुए चैत्य शब्द का भी जिन मन्दिर या जिन मूर्ति अर्थ करेंगे? नहीं वहां तो आप अन्य मन्दिर ही अर्थ करेंगे, क्योंकि - यदि वहां आपने उन दुखान्तविपाकों (अनार्य, पापी, मलेच्छ और हिंसकों) के भी जिन मंदिर होना मान लिया तब तो. इन जिन मंदिरों का कोई महत्त्व ही नहीं रहेगा और मिथ्यात्वी सम्यक्त्वी का भी भेद नहीं रहेगा, इसलिये वहां तो आप चट से व्यंतर का मंदिर ही अर्थ करेंगे, इससे आपके विजयानन्दजी के माने हुए तीन ही अर्थों के सिवाय अन्य चौथा अर्थ भी सिद्ध हुआ। आपके ही 'मूर्ति-मण्डन प्रश्नोत्तर' के लेखक पृ० २८२ में प्रश्न व्याकरण के आस्रव द्वार में आये हुए चैत्य शब्द का अर्थ (जो कि मनो कल्पित है) इस प्रकार करते हैं कि - .
कोना चैत्य तो के कसाइ, बाघरी, मांछला पकड़नार, महाक्रर कर्मों करनार, इत्यादि घणा मलेच्छ जातिते सर्वे यवन लोक देवल प्रतिमा वास्ते जीवों ने हणे ते आश्रव द्वार छे' __ और इसी पृष्ठ पंक्ति १ में -
__ 'ते ठेकाणे आश्रव द्वार मां तो मलेच्छोना चैत्य 'मसिदो' ने गणावेल छे'
इससे भी चैत्य शब्द का अन्य मंदिर और मस्जिद अर्थ सिद्ध हुआ। अब बुद्धिमान स्वयं विचार करें कि कहां तो केवल मनःकल्पित दो और तीन ही अर्थ मानकर बाकी के लिए शून्य ठोक देना, और कहां इन्हीं के मतानुयाइयों के माने हुए अन्य अर्थ और टीकाकारे तथा सूत्रकारों के अर्थ जो ऊपर बताये गये हैं, क्या अब भी हठधर्मीपन में कोई कसर है?
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