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श्री लोंकाशाह मत - समर्थन
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कारण समझते थे, किन्तु इससे यह नहीं समझ लेना कि वे श्रावक लौकिक कार्य के लिए कुल परम्परानुसार लौकिक देवों को नहीं पूजते थे, क्योंकि वे भी संसार में बैठे थे, अतएव सांसारिक और कुल परंपरागत रिवाजों का पालन करते थे । प्रमाण के लिए देखिये१. भरतेश्वर चक्रवर्ती सम्राट ने, चक्ररत्न, गुफा, द्वार आदि की, लौकिक देवों के आराधना के लिए तप किया।
पूजा
की
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(जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति ) २. शांति आदि तीन तीर्थंकरों ने भी चक्रवर्ती अवस्था में भरतेश्वर की तरह चक्ररत्नादि लौकिक देवों की पूजा की थी। (त्रिष्टि शलाका पुरुष चरित्र)
३. अरहन्नक-श्रमणोपासक ने नावा पूजन किया और बल बाकुल दिये। (ज्ञाताधर्मकथा)
४. अभयकुमार ने धारिणी का दोहद पूर्ण करने को अष्टमभक्त तप कर देवाराधन किया । (ज्ञाताधर्मकथा) ५. कृष्ण वासुदेव ने अपने छोटे भाई के लिये अष्टम तप कर देवाराधन किया। ( अतंकृत दशांग ) ६. हेमचन्द्राचार्य ने पद्मनी रानी को नग्न रख कर उसके सामने विद्या सिद्ध की। (योगशास्त्र भाषान्तर प्रस्तावना) ७. मूर्ति पूजक सम्प्रदाय के जिनदत्त सूरि आदि आचार्यों ने भी देवी देवताओं का आराधन किया । ( मूर्ति-पूजक ग्रंथ ) ८. मूर्तिपूजक साधु प्रतिक्रमण में देवी देवताओं की प्रार्थना करते हैं, जो प्रत्यक्ष है ।
जब कि खुद मूर्ति पूजक साधु ही मुनि धर्म से विरुद्ध होकर लौकिक देवताओं का आराधन आदि करते हैं तो संसार में रहे हुए
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