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________________ ३४ चमरेन्द्र ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ जावे और उसकी आलोचना नहीं करे तो वह विराधक भी तो कहा गया है? यह क्या बता रहा है? आप यहाँ ईर्यापथिकी की आलोचना नहीं समझें, वहाँ 'तस्स ठाणस्स' कहकर उस स्थान की आलोचना लेना कहा है, इससे तो यह कार्य ही अनुपादेय सिद्ध होता है फिर इसमें अधिक विचार की बात ही क्या है ? ६. 'चमरेन्द्र' प्रश्न - चमरेन्द्र जिन मूर्ति का शरण लेकर स्वर्ग में गया, यह भगवती सूत्र का कथन भी आपको मान्य नहीं है क्या? उत्तर - भगवती सूत्र में चमरेन्द्र मूर्ति का शरण लेकर स्वर्ग में गया, ऐसा लिखा यह कथन ही असत्य है, वहाँ स्पष्ट बताया गया है कि-चमरेन्द्र छद्मस्थावस्था में रहे हुए श्री वीर प्रभु का शरण लेकर ही प्रथम स्वर्ग में गया था, अतएव प्रश्न का आशय ही ठीक नहीं है। लेकिन कितने ही मूर्ति-पूजक बन्धु यहाँ पर शक्रेन्द्र के विचार करने के प्रसंग का पाठ प्रमाण रूप देकर मूर्ति का शरण लेना बताते हैं उस पाठ में यह बताया गया है कि - शक्रेन्द्र ने विचार किया कि चमरेन्द्र सौधर्म स्वर्ग में आया किस आश्रय से? इस पर विचार करते-करते उसने तीन शरण जाने, तद्यथा - 'अरिहंत, अरिहंत चैत्य, भावितात्मा अणगार' इन तीन शरणों में मूर्तिपूजक बन्धु ‘अरिहंत चैत्य' शब्द से मूर्ति अर्थ लेते हैं किन्तु यह योग्य नहीं है। क्योंकि अरिहन्त शब्द से केवलज्ञानादि भावगुणयुक्त अरिहन्त और अरिहन्त चैत्य से छद्मस्थ अवस्था में रहे हुए द्रव्य अरिहन्त अर्थ होना चाहिए, यहाँ यही अर्थ प्रकरण संगत इसलिए है कि - चमरेन्द्र छद्मस्थ महावीर प्रभु का ही शरण लेकर गया था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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