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________________ : श्री लोंकाशाह मत - समर्थन ************************************** की झड़ी लग गई, सद्भाग्य से पंडितजी के मूल्यवान शरीर पर आक्रमण नहीं हुआ, इसलिए यदि कोई सत्य विचार रखते भी हैं तो सामाजिक भय से सत्य समझते हुए भी प्रकट करते डरते हैं। इत्यादि पर से यह स्पष्ट हो गया कि हमारे ये भोले भाई गुरुओं के पढ़ाये हुए तोते हैं, इसलिए शास्त्रज्ञान से प्रायः अनभिज्ञ इन बन्धुओं को कुछ भी नहीं कह कर इनके गुरुओं की दलीलों को ही कसौटी पर कस कर विचार करेंगे जिससे पाठकों को यह मालूम हो जाय कि - इनकी युक्ति और प्रमाणों में कितना सत्य रहा हुआ है । पाठकों की सरलता के लिए हम इनकी दलीलों का प्रश्नोत्तर रूप समाधान करते हैं। १. द्रौपदी प्रश्न- द्रौपदी ने जिन प्रतिमा की पूजा की है जिसका कथन 'ज्ञाताधर्मकथांग' में है और वह श्राविका थी यह उसके 'णमोत्थुणं' पाठ से मालूम होता है, इससे मूर्ति - पूजा करना सिद्ध होता है, फिर आप क्यों नहीं मानते ? - उत्तर - द्रौपदी के चरित्र का शरण लेकर मूर्ति पूजा सिद्ध करना, वस्तुस्थिति की अनभिज्ञता और आगम प्रमाण की निर्बलता जाहिर करना है। यहां असलियत को स्पष्ट करने के पूर्व पाठकों की सरलता के लिए 'जिन' शब्द का अर्थ और उसकी व्याख्या कर देना उचित समझता हूँ । 'जिन' शब्द के मूर्ति पूजक आचार्य श्री हेमचन्द्रजी ने निम्न - - चार अर्थ किये हैं । १. तीर्थंकर २. सामान्य केवली ३. कंदर्प कामदेव ४. नारायण हरि (वासुदेव) । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only (हेमीनाम माला) www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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