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द्रौपदी
(१) तीर्थंकर - बाह्य और आभ्यंतर शत्रुओं को जीतने वाले अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त बल के धारक, देवेन्द्र नरेन्द्रादि के पूजनीय, ३४ अतिशय, ३५ वाणी अतिशय के धारक, विश्व वंद्य, साधु आदि चार तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थंकर प्रथम 'जिन' हैं।
(२) सामान्य केवली - बाह्य-आभ्यंतर शत्रुओं से रहित, अनन्त ज्ञानादि चतुष्ट्य के धारक, कृतकृत्य केवली महाराज द्वितीय 'जिन' हैं।
ये दोनों प्रकार के 'जिन' भाव 'जिन' हैं। इनके शरण में गया हुआ प्राणी संसार सागर को पार कर मोक्ष के पूर्ण सुख का भोक्ता बन कर जन्म मरण से मुक्त होता है।
(३) कंदर्प (कामदेव) - यह तीसरा दिग्विजयी 'जिन' है, जिसमें देव, दानव, इन्द्र, नरेन्द्र, मनुष्य, पशु, पक्षी, सभी को अपने आधीन में रखने की शक्ति है।
इस देव के प्रभाव से बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के आपस में युद्ध हुए। रावण, पद्मोत्तर, कीचक, मदन रथ, आदि महान् नृपतिओं के राज्यों का नाश कर उन्हें नर्क गामी बनाया है। बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के वर्षों के तप संयम को इस कामदेव ने इशारे मात्र से नष्ट कर उन्मार्ग गामी बना डाला है। नन्दीसेण जैसे महात्मा को इस जिन देव ने अपने एक ही झपाटे में धराशायी कर अपना पूर्ण आधिपत्य जमा दिया, इसी विश्वदेव की प्रेरणा से ही तो एक तपस्वी साधु विशाला नगरी के नाश का कारण बना। इस देव की लीला ही अवर्णनीय है। यह बड़े-बड़े उच्च कुल की कोमलांगियों के कुल गौरव का नाश करते शरमाता नहीं, अनेक महा सतियों को इस जिन देव की कृपा से
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