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________________ श्री लोकाशाह मत-समर्थन । 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米 से अनभिज्ञ ही रहते हैं, और गुरुओं से सुनी हुई अपनी अयोग्यता के कारण सूत्र पठन की ओर इनकी रुचि भी नहीं बढ़ती, यदि किसी जिज्ञासु के मन में आगम वांचन की भावना जागृत हो तो भी गुरुओं की बताई. हुई अयोग्यता और महापाप के भय से वे आगम वांचन से वंचित ही रहते हैं, उन्हें यह भय रहता है कि कहीं थोड़ा सा भी आगम पठन कर लिया तो व्यर्थ में महापाप का बोझा उठाना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में वे लोग 'बाबा वाक्यं प्रमाणं' पर ही विश्वास नहीं करें तो करें भी क्या? इस प्रकार गृहस्थ वर्ग को अन्धकार में रखकर पूज्य वर्ग स्वेच्छानुसार प्रवृत्ति करे इसका मुख्य कारण यही हो सकता है कि यदि श्रावक वर्ग को सूत्र पठन का अधिकार दिया गया, तो फिर सत्यार्थी, तत्त्व गवेषी अभिनिवेश-मिथ्यात्व रहित हृदय वाले, मुमुक्षुओं की श्रद्धा हमारी प्रचलित मूर्ति-पूजा पद्धति को छोड़कर शुद्ध मार्ग में लग जायगी, जिससे हमारी मान्यता, पूजा, स्वार्थ एवं इन्द्रिय पोषण में भारी धक्का लगेगा। देखिये इन्हीं के विजयानन्द सूरि स्वकृत 'अज्ञानतिमिर-भास्कर' की प्रस्तावना पृ० २७ पं० ३ में लिखते हैं कि - 'जब धर्माध्यक्षों का अधिक बल हो जाता है तब वे ऐसा बन्दोबस्त करते हैं कि - कोई अन्य जन विद्या पढ़े नहीं जेकर पढ़े तो उसको रहस्य बताते नहीं, मन में यह समझते हैं कि अपढ़ रहेंगे तो हमको फायदा है, नहीं तो हमारे छिद्र काढ़ेंगे, ऐसे जान के सर्व विद्या गुप्त रखने की तजवीज करते हैं, इसी तजवीज ने हिंदुस्तानियों का स्वतंत्र पणा नष्ट करा और सच्चे धर्म की वासना नहीं लगने दी और नये-नये मतों के भ्रम जाल में गेरा और अच्छे धर्म वालों को नास्तिक कहवाया।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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