SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्री लोंकाशाह मत - समर्थन प्रस्तावना चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - अगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्तधम्मे चेव ॥ (स्थानांग सूत्र ) अनन्त, अक्षय, केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक, विश्वोपकारी, त्रिलोकपूज्य, श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु ने भव्य जीवों के उद्धार के लिए एकान्त हितकारी मोक्ष जैसे शाश्वत सुख को देने वाले ऐसे दो प्रकार के धर्म प्रतिपादित किये हैं। जिसमें प्रथम गृहस्थ (श्रावक) धर्म और दूसरा मुनि (अनगार) धर्म है। गृहस्थ धर्म की व्याख्या में सम्यक्त्व, द्वादशव्रत, ग्यारह प्रतिमा, आदि का विस्तृत विचार आगमों में कई जगह मिलता है । प्रमाण के लिए देखिए wom (१) गृहस्थ धर्म की संक्षिप्त व्याख्या आवश्यक सूत्र प्रकार बताई है। Jain Educationa International पंचण्हमणुव्वयाणं, तिन्हं गुणव्वयाणं, चउन्हं सिक्खावयाणं, बारसविहस्स, (२) श्रावक जीवन और उसमें दैनिक - प्रासंगिक कर्त्तव्यों का वर्णन - For Personal and Private Use Only में इस www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy