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___ श्री लोकाशाह मत-समर्थन
१६९ ****乎书本********************************** करें, अप्रसन्न नहीं होवें, इस तरह मनन करने पर आपकी श्रद्धा शुद्ध होकर आपको विशुद्ध जैनत्व के उपासक बना देगी, जिससे मेरा प्रयत्न भी सफल होगा। . अन्त में श्री जिनवाणी से विपरीत कुछ भी शब्द वाक्य या अर्थ लिखा गया हो तो मिथ्या दुष्कृत देता हुआ, आगमज्ञ बहुश्रुतों से नम्र विनती करता हूं कि वे कृपया भूल को समझा देने का कष्ट स्वीकार करें।
|| सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥
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