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कव्वाली
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|| कव्वाली ॥ बहाना धर्म का करके, कुगुरु हिंसा बढ़ाते हैं। बिम्ब पे, बील, दल, जल, फूल, फल माला चढ़ाते हैं। टेर॥ नेत्र के विषय पोषन को, रचे नाटक विविध विधि के। हिंडोला रास और साँजी, मूढ़ मण्डल मंडाते हैं॥१॥ करावें रोशनी चंगी, चखन की चाह पूरन को। बता देवें भगति प्रभु की, आप मौजें उड़ाते हैं॥२॥ लिखा है प्रकट निशि भोजन, अभक्ष्यों में तदपि भोंदू। रात्रि में भोग मोदक का, प्रभु को क्यों लगाते हैं।। ३॥ न कोई देव देवी की, मूर्ति खाती नजर आती। दिखा अंगुष्ठ मूरति को, पुजारी माल खाते हैं॥४॥ कटावें पेड़ कदली के, बनावें पुष्प के बंगले। भक्ति को मुक्तिदा कहके, जीव बेहद सताते हैं।। ५।। सरासर दीन जीवों के, प्राण लूटें करें पूजा। बतावें अङ्ग परभावन् कुयुक्ति षठ लगाते हैं॥६॥ सुगुरु श्री मगन मुनिवर को, चरण चेरो कहे 'माधव'। धर्म के हेतु हिंसा जो, करें सो कुगति जाते हैं॥७॥
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