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________________ [19] **************************************** ब ऐसे निकृष्ट समय में जैन शासन को फिर एक महावीर की वश्यकता हुई, बिना महावीर के बहुत समय से गहरी जड़ जमाये ए पाखण्ड का निकन्दन होना असंभव था, ऐसे विकट समय में सी जैन समाज को प्रकृति ने एक वीर प्रदान किया। . विक्रमीय पन्द्रहवीं शताब्दी के वृद्धकाल में जैन समाज को उन्नत बनाने और भगवान् महावीर के शास्त्रों में छिपे हुए पुनीत सेद्धांतों का प्रचार कर पाखंड का विध्वंस करने के लिए इसी जैन जाति में दूसरा धर्म क्रांतिकार श्रीमान् लोंकाशाह का प्रादुर्भाव हुआ। श्रीमान् अपनी प्राकृतिक प्रतिभा से बाल्यकाल ही में प्रौढ़ अनुभवियों के भी मार्ग दर्शक बन गये, आप रत्न परीक्षा में निपुण एवं सिद्धहस्थ थे। एक बार इसी रत्न परीक्षा में आपने बड़े-बड़े अनुभवी एवं वृद्ध जौहरियों को भी अपनी परीक्षा. बुद्धि से चकित कर दिया। फलस्वरूप आप राज्यमान्य भी हुए, कुछ समय तक आपने राज्य के कोषाध्यक्ष के पद को भी सुशोभित किया, तदनन्तर किसी विशेष घटना से संसार से उदासीनता होने पर राज्य काज से निवृत्त हो, आत्मचिन्तन में लगे। श्रीमान् पठन मनन के बड़े शौकीन थे, उचित संयोगों में आपने जैन आगमों का पठन एवं मनन किया, जिससे आपके अन्तर्चक्षु एकदम खुल गये, पुनः-पुनः शास्त्र स्वाध्याय एवं मनन होने लगा, साथ ही वर्तमान समाज पर दृष्टिपात की। शास्त्रों के पठन मनन से श्रीमान् की परीक्षा बुद्धि एकदम सतेज हो गई। समाज में फैले हुए पाखंड और अन्धविश्वास से आपको अपार खेद हुआ, ओर से छोर तक विषम परिस्थिति देखकर आपने पुनः सुधार कर धर्म को असली स्वरूप में लाने के लिए पूज्य वर्ग से तत् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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