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विषयक विचार विनिमय किया, परिणाम में शिथिलाचारिता ए स्वार्थपरता का ताण्डव दिखाई दिया, जब वीतराग मार्ग की य अवस्था इस वीर श्राद्धवर्य्य से नहीं देखी गई, तब स्वयं दृढ़ता पूर्व कटिबद्ध हो प्रण किया कि "मैं अपने जीतेजी जिन मार्ग इस अवनत अवस्था से अवश्य पार कर शुद्ध स्वरूप में लाऊँगा अ शुद्ध जैनत्व का प्रचार कर पाखंड के पहाड़ को नष्ट करूँगा, इ पुनीत कार्य में भले ही मेरे प्राण चले जाय पर ऐसी स्थिति शक्ति रहते कभी भी सहन नहीं कर सकता । " शीघ्र ही आप सुधार का सिंहनाद किया, पाखंड की जड़ें हिल गई, पाखंडी घब गये, इस वीर का प्रण ही पाखंड को तिरोहित करने का श्री गणे हुआ। लगे सद्धर्म्म का प्रचार करने, जनता भी मूल्यवान् वस्तु ग्राहक होती है। जब तक सच्चे रत्न की परीक्षा नहीं हो तभी त कांच का टुकड़ा भी रत्न गिना जाता है, पर जब असली और स रत्न की परीक्षा हो जाती है तब कोई भी समझदार कांच के टुव को फेंकते देर नहीं करता। ठीक इसी प्रकार जनता ने आप उपदेशों को सुना, सुनकर मनन किया, परस्पर शंका समाध किया, परीक्षा हो चुकने पर प्रभु वीर के सत्य, शिव और सुन सिद्धांत को अपनाया, पाखंड और अन्धश्रद्धा के बंधन से मु प्राप्त की । एक नहीं सैकड़ों, हजारों नहीं किन्तु लाखों मुमुक्षुओं भगवान् महावीर के मुक्तिदायक सिद्धांत को अपनाया, सैकड़ों से फैले हुए अन्धकार को इस महान् धर्म क्रांतिकार लोकम लोकाशाह ने लाखों हृदयों से विलीन कर दिया । मूर्तिपूजा की खोखली हो गई । यदि यह परम पुनीत आत्मा अधिक समय
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