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________________ १४५ श्री लोकाशाह मत-समर्थन ******************************* ************** समय ना वातावरण नेज ध्यानमा लईने स्पष्ट करवो जोइए, आ रीते टीकाकरनारो होय तेज खरो टीकाकार होइ शके छे, परन्तु मूल नो अर्थ करती वखते मौलिक समय ना वातावरण नो ख्याल न करतां जो आपणी परिस्थिति ने ज अनुसरिए तो ते मूलनी टीका नथी पण मूल जो मूसल करवा जेवू छे, हुं सूत्रोनी टीकाओ सारी रीते जोई गयो छु. परन्तु तेमां मने घणे ठेकाणे मूलनुं मूसल करवा जेवू लाग्युं छे, अने तेथी मने घणुं दुःख थयुं छे, आ संबंधे अहिं विशेष लखवु अप्रस्तुत छे, तो पण समय आव्ये सूत्रों अने टीकाओ ए विषे हुं विगतवार हेवाल आपवानुं मारूं कर्त्तव्य चूकीश नहिं तो पण आगल जणावेला श्री शीलांक सूरिए करेला आचारांग ना केटलाक पाठोना अवला अर्थों ऊपरथी अने चैत्य शब्द ना अर्थ ऊपर थी आप सौ कोई जोई शक्या हशोके टीकाकारो ए अर्थों करवा मां पोताना समय नेज सामो राखी केटलुं बधुं जोखम खेडयु छे। हुआ बाबत ने पण स्वीकार करूँ छु के जो महेरवान टीकाकार महाशयोए जो मूल नो अर्थ मूल नो समय प्रमाणेज को होत तो जैन शासन माँ वर्तमान मां जे मतमतांतरो जोवा मां आवे छे ते घणा ओछा होत, अने धर्म ने नामे आवु अमासनुं अंधारूं घणुं ओछु व्यापत'' आगे पृ० १३१ में लिखते हैं कि - "जे बात अंगो ना मूल पाठो मां नथी ते बात तेना उपांगोमां, नियुक्तिओमा, भाष्योमां, चूर्णिओ मां, अवचूर्णिओ मां, अने टीकाओ मां शीरीते होइ शके?' . . इस प्रकार जब मूल की टीकाओं की यह हालत है तब स्वतंत्र ग्रन्थों की तो बात ही क्या? इन बंधुओं ने मूर्ति-पूजा को शास्त्रोक्त सिद्ध करने के लिए कितने ही नूतन ग्रन्थ बना डाले हैं। पहाड़ पर्वत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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