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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
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- इस प्रकार साहसिक महानुभावों ने अपने मत की सिद्धि के लिए मूल में धूल मिलाकर जनता को बड़े भ्रम में डाल दिया है।
मूल सूत्र के नाम से जो गप्पें उड़ाई गई हैं अब उनके भी कुछ नमूने दिखाये जाते हैं। लीजिये -
(१) सम्यक्त्वशल्योद्धार पृ०६ के नोट में उत्तराध्ययन सूत्र का नाम लेकर एक गाथा लिखी है वो इस प्रकार है -
तीए वि तासिं साहूणीणं समीवे गहिया दिक्खाकय सुव्वयनामा तव संजम कुणमाणी विहरइ।
बन्धुओ! उत्तराध्ययन के हवें अध्ययन की कुल ६२ गाथाएं हैं, किन्तु इन सभी काव्यों में उक्त काव्य का पता ही नहीं, फिर उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से गप्प क्यों उड़ाई गई?
(२) मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० २३७ में सूत्रकृतांग श्रुतस्कन्ध २ अध्ययन ६ का नाम लेकर आर्द्रकुमार के सम्बन्ध में लिखते हैं कि "सूत्र मां तो 'प्रथम जिन पडिमा' एम स्पष्ट प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव स्वामी नी प्रतिमानो पाठ छे।"
यह भी एक पूर्ण रूप से गप्प ही है। मूल सूत्र में यह बात है ही नहीं।
(३) पुनः उक्त ग्रन्थकार पृ० २११ में एक गाथा की दुर्दशा इस प्रकार करते हैं -
आरम्भे नत्थी दया, विना आरम्भ न होइ महापुनो। पुन्ने न कम्म निजरे रान कम्म निजरे नत्थी मुक्खी।
अर्थात् - आरम्भ में दया नहीं, बिना आरम्भ के महापुण्य नहीं होता, पुण्य से कर्म की निर्जरा होती है, निर्जरा बिना मोक्ष नहीं मिल सकता।
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