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________________ १२६ क्या बत्तीस मूल सूत्र के बाहर का साहित्य मान्य है? *************************************** बात है? इन्हें भी चाहिए कि प्रातः काल होते ही ये वृक्ष और लताओं पर टूट पड़ें, जितने अधिक फूलों से पूजेंगे उतना अधिक फल होगा और उतने ही अधिक फूलों के जीवों की इनके मतानुसार दया भी होगी। यदि यह कहा जाय कि - श्री वज्र स्वामी ने उस समय अन्य देशों से पुष्प लाकर शासन की बड़ी भारी प्रभावना की और राजा जैन धर्म पर के द्वेष को शान्त कर उसे जैन धर्मी बना दिया, यह कथन भी ठीक नहीं, क्योंकि - जैन धर्म का प्रभाव फूलों या फलों से मूर्ति पूजने में नहीं किन्तु, इसके कल्याणकारी प्राणीमात्र को शान्तिदाता ऐसे विशाल एवं उदार सिद्धांत से ही होता है। वज्रस्वामी पूर्वधर और अपने समय के समर्थ प्रभावक आचार्य थे, वे चाहते तो अपने प्रकाण्ड पांडित्य और महान् आत्मबल से धर्म एवं जिन शासन की प्रभावना करके जैनत्व की विजय वैजयंति फहरा सकते। क्या लाखों फूलों की हिंसा करने में ही धर्म एवं शासन की प्रभावना है ? क्या श्रीमद्वज्र स्वामी जी में ज्ञान और चारित्र बल नहीं था, जो वे लाखों पुष्पों के प्राण लूट कर असाधुता का कार्य करते? .. यदि सत्य कहा जाय तो दशपूर्वधर श्रीमद्वज्राचार्य ने साधुता का घातक और आस्रव वर्धक ऐसा कार्य किया ही नहीं, न कल्प सूत्र के मूल में ही यह बात है, किन्तु पीछे से किसी महामना महाशय ने इस प्रकार की चतुराई किसी गुप्त आशय से की है, ऐसा मालूम होता है, इस प्रकार समर्थ आचार्यों के नाम लेकर अन्ध श्रद्धालुओं से आज तक मनमानी क्रियाएं करवाई जा रही हैं। (इ) इसी प्रकार त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र, जैन रामायण, पाण्डव चरित्र, समरादित्य चरित्र आदि ग्रंथों की कथाओं में सैंकड़ों स्थानों पर मूर्ति की कल्पित कथाएं घड़ी गयी है, श्री हेमचन्द्राचार्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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