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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
१२५ ********************************************* रास चरित्र और महात्म्य ग्रन्थों को भी आप देखेंगे तो वहां भी आप को मूर्ति पूजा विषयक गपोड़े प्रचुरता से मिलेंगे, पर ये हैं सब मन गढन्त ही, क्योंकि उभय मान्य और गणधर रचित, सूत्रों में तो इस विषय का संकेत मात्र भी नहीं है। संक्षेप में यहाँ कुछ गपोड़ों का नमूना भी देखिये -
(अ) कुमारपाल राजा के इस विशाल राज्य ऐश्वर्य का कारण निम्न प्रकार बताया है -
नव कोड़ी ने फूलड़े, पाम्यो देश अठार। कुमार पाल राजा थयो, वा जय जयकार।
अर्थात् - केवल नौ कोड़ी के फूलों से मूर्ति की पूजा करके ही कुमारपाल अठारह देश का राजा हुआ। ऐसा पूर्व जन्म का इतिहास तो बिना विशिष्ट ज्ञान के कोई नहीं बता सकता और अवधि आदि विशिष्ट ज्ञान का कथाकार के समय में अभाव था, तब ऐसी पूर्व भव की बात
और उस पुष्प पूजा का ही अठारह देश पर राज्य का फल कैसे जाना गया? क्या यह मन गढ़न्त गप्प गोला नहीं है। पाठक स्वयं विचारें तो मालूम होगा कि स्वार्थ परता क्या नहीं कराती? और देखिये -
___ (आ) कल्प सूत्र व आवश्यक की कथा है उसमें यह बतलाया है कि-दश पूर्वधर श्रीमद् वज्रस्वामीजी महाराज मूर्ति पूजा के लिए आकाश में उड़कर अन्य देश में गये और वहाँ से बीस लाख फूल लाकर पूजा करवाई।
पाठक वृन्द! जब श्रीमद्वज्रस्वामी जैसे दशपूर्वधर महान् आचार्य भी मूर्ति पूजा के लिए लाखों फूल अनेक योजन आकाश मार्ग से जाकर लाये और पूजा करवाई तब आजकल के साधु लोग मन्दिर के बगीचे में से ही थोड़े से फूल तोड़कर पूजा करें तो इसमें क्या बुरी
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