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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
૧૨૧ ******************************************** को बासी रहे, मकड़ी के जाले वाले, जो देखने में अच्छे न लगे, दुर्गंध वाले, सुगंध रहित, खट्टी गंध वाले......ऐसे फूलों से जिनदेव की पूजा न करणी।
(पृ० ४१३) (६) मन्दिर में मकड़ी के जाले लगे हों, उनके उतारने की विधि बताते हुए लिखते हैं कि - .
साधु नोकरों की निर्धन्छना करें.......पीछे जयणा से साधु आप दूर करे।
(पृ० ४१७) (७) देव के आगे दीवा बाले......देव का चन्दन......देव का जल......।
(पृ० ४२६) (८) संघ निकालते समय साथ में लेने का सामान आदि का विधान भी देखिये -
आडम्बर सहित बड़ा चरु, घड़ा, थाल, डेरा, तम्बू, कड़ाहियां साथ लेवे, चलतां कूपादिक को सज करे, तथा गाड़ा सेज वाला, रथ, पर्यंक, पालखी, ऊँट, घोड़ा प्रमुख साथ लेवे, तथा श्रीसंघ की रक्षा वास्ते बड़े योद्धों को नोकर रक्खे, योद्धों को कवच अंगकादि उपस्कर देवे, तथा गीत नाटक वाजिंत्रादि सामग्री मेलवे......... फूल घर कदली घरादि महापूजा करे.......नाना प्रकार की वस्तु फल एक सौ आठ, चौवीस, ब्यासी, बावन, बहत्तरादि ढोवे, सर्व भक्ष भोजन के थाल ढोवे। .
(पृ० ४७४) (६) सुन्दर अंगी, पत्र भंगी, सर्वाङ्गाभरण, पुष्पगृह, कदलीगृह, पूतली पाणी के यंत्रादि की रचना करे, तथा नाना गीत नृत्यादि उत्सव से महापूजा रात्रि जागरण करे.......तथा तीर्थ की प्रभावना वास्ते बाजे गाजे प्रौढाडम्बर से गुरु का प्रवेश करावे। (पृ० ४७४)
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