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११८ क्या बत्तीस मूल सूत्र के बाहर का साहित्य मान्य है? **********************************************
नरहत्या कर खूनी कहलाने वाला किसी दुष्ट बुद्धि से ही हत्या करते हैं, उस हत्या का कोई भी अनुमोदन नहीं करता, किन्तु जो मूर्ति-पूजा में केवल धर्म के नाम से सूक्ष्म और स्थूल जीवों की हत्या कर फिर भी उसे अच्छा समझते हैं और सर्व त्यागी महामुनि कहे जाने वाले उस आरम्भ की अनुमोदना करते हैं, अनुमोदना ही नहीं, कहकर करवाते हैं, यह कितने आश्चर्य की बात है? यदि इसे सरासर अन्धेर भी कहा जाय तो क्या अतिशयोक्ति है?
३६. क्या बत्तीस मूल सूत्र के बाहर का साहित्य मान्य है?
प्रश्न - आप बत्तीस मूल सूत्र के सिवा अन्य सूत्र ग्रंथ तथा उन सूत्रों की टीका, नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, दीपिका आदि को क्यों नहीं मानते? नन्दीसूत्र जो कि ३२ में ही है उसमें अन्य सूत्रों के भी नामोल्लेख है, फिर ऐसे सूत्र को क्या मूर्ति पूजा का अधिकार होने से
ही तो आप नहीं मानते हैं? ... उत्तर - जो शास्त्र, ग्रंथ या टीकादि साहित्य वीतराग प्ररूपित द्वादशांगी वाणी के अनुकूल है वही हमारा मान्य है, हमारी श्रद्धानुसार एकादशांग और अन्य २१ सूत्र ऐसे ३२ सूत्र ही पूर्ण रूप से वीतराग वचनों से अबाधित है इसके सिवाय के साहित्य में बाधक अंश भी प्रविष्ट हो गया है तथा उपस्थित है, अतएव उनको पूर्ण रूप से मानने को हम तय्यार नहीं है। ३२ सूत्रों के बाहर भी जो साहित्य है और उसका जितना अंश आगम आशययुक्त या जिन वचनों को अबाधक है, उसे मानने में हमें कोई हानि नहीं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
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