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________________ [14] मूर्ति पूजा की प्रमाणिकता के लिए उदाहरण के रूप में पेश करते हैं। वे उदाहरण कितने थोथे अप्रासंगिक एवं अनागमिक है उन सभी का समाधान अपने समय के महान् चर्चावादी तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्रीमान् रतनलालजी सा. डोशी, सैलाना (मध्य प्रदेश) ने इस पुस्तक में - किया है। सुज्ञ वर्ग को खाली दिमाग से, बिना किसी पूर्व आग्रह के, शांत चित्त से इस पुस्तक का अद्योपान्त पठन कर सत्य तथ्य को जानने का प्रयास करना चाहिये । इस पुस्तक का प्रकाशन विक्रम संवत् १६६१ में सन् १९३६ यानी आज से लगभग ६३ वर्ष पूर्व हुआ था । इतने वर्षों तक यह पुस्तक अप्राप्य रही, हमने भी इसके प्रकाशन की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया । किन्तु वर्तमान में स्थानकवासी समाज की स्थिति दिन प्रतिदिन अवनति की ओर बढ़ती देख हमें इसका प्रकाशन आवश्यक ही नहीं अनिर्वाय लगा। अतएव प्राथमिकता से इसका प्रकाशन इसी वर्ष करने का निर्णय किया। बंधुओ ! यदि देखा जाय तो वर्तमान में जो जिनशासन की अवनति की स्थिति बन रही है, उसमें प्रमुख निमित्त भगवान् के उत्तराधिकारी एवं साधु नाम धराने वाला वर्ग है । जो प्रभु के सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूप मोक्षमार्ग से हटकर अपनी मनमानी, सुख सुविधा, के अनुसार जिनशासन को धर्म का जामा पहनाने में लगे हुए हैं। आरंभ, आडम्बर तो इस वर्ग में अभी अपनी चरम सीमा पर पहुँचा हुआ कह दे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। कई .. अर्थों में तो यह वर्ग यतियों से भी आगे बढ़ चुका है, इन्हें अपने वेश तक का कुछ ख्याल भी नहीं है । ऐसी स्थिति में इनसे जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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