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________________ [15] *** शासन के सत्य स्वरूप के प्राप्त होने की आशा रखना निरर्थक है। इनके आचार विचार, कार्यकलापों को देख एवं उनसे क्षुब्ध हो कर हमारें समाज का बहुत बड़ा वर्ग, मूर्त्ति पूजा, जड़ पूजा की ओर अग्रसर हो रहा है। क्योंकि समाज में आगम ज्ञान का बल तो शनैः शनै घट रहा है तथा अधिकांश साधु समाज से नया कुछ भी प्राप्त हो नहीं रहा है । ऐसे विषम समय में हमारे समाज की स्थिति डांवाडोल होना स्वाभाविक है। इस विषम समय में स्थानकवासी समाज की परम्परा को स्थिर रखने, इसे सही रूप से समझने के लिए प्रासंगिक ठोस साहित्य की समाज में अत्यधिक आवश्यकता है। इसके लिए प्रस्तुत पुस्तक के साथ अन्य तीन पुस्तकों (जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा, मुख वस्त्रिका सिद्धि, विद्युत् (बिजली) बादर तेऊकाय है) काफी सहयोगी होगी । कृपया सुज्ञ पाठक बंधु इन चारों पुस्तकों का आद्योपान्त पठन अवश्य करावें । इस पुस्तक के साथ अन्य तीन पुस्तकों के प्रकाशन के बारे में धर्म प्रिय उदारमना श्रावक रत्न श्रीमान् वल्लभचन्दजी सा. डागा, जोधपुर निवासी के सामने चर्चा की तो आपको अत्यधिक प्रसन्नता हुई। आपने चारों पुस्तकों के प्रकाशन का सम्पूर्ण खर्च अपनी ओर से देने की भावना व्यक्त की। मैंने आपसे निवेदन किया कि फ्री पुस्तकें देने में पुस्तक की उपयोगिता समाप्त हो जाती है तथा उसका दुरुपयोग होता है। अतएव इन चारों पुस्तकों का दृढ़धर्मी प्रियधर्मी उदारमना श्रावक रत्न श्रीमान् वल्लभचन्दजी सा. डागा, जोधपुर के अर्थ सहयोग से अर्द्ध मूल्य में प्रकाशन किया जा रहा है। आदरणीय डागा साहब की Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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