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. १०६ क्या पुष्पों से पूजा पुष्पों की दया है? ************** *** ************* होनी चाहिये, इसके लिए जैन को तो अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि जैनियों के देव वीतराग हैं वे किसी बाहरी पौद्गलिक वस्तु को आत्मा के लिए उपयोगी नहीं मानते, पुद्गलों के त्याग को ही जिन्होंने धर्म कहा है वे स्वयं सुगन्ध सेवन आदि के त्यागी हैं, फिर ऐसे वीतराग की पूजा फूलों द्वारा कैसे के जा सके? ऐसे प्रभु की पूजा तो मन को शुद्ध स्वच्छ निर्विकार बना कर अपने को प्रभु चरणों में भक्ति रूप से अर्पण कर देने में ही होती है, किसी बाहरी वस्तु से नहीं। फिर भी हम यहाँ आप से पूछते हैं। कि अकेले महिया-पूजा शब्द मात्र से फूलों से पूजा होने का किस प्रकार कहा गया? यह फूल शब्द कहां से लाकर बैठाया गया? यदि इसके मूल कारण पर विचार किया जाय तो यह स्पष्ट भाषित होता है कि फूलों से पूजने में फूलों की हिंसा होती है इससे बचने के लिए ही महिया शब्द की ओट ली गई है जो सर्वथा अनुपादेय है।
. (१) यदि महिया शब्द से पुष्प से पूजा करने का अर्थ होता तो गणधर देव अंतकृदशांग सूत्र के छडे वर्ग के तीसरे अध्ययन के चौदहवें सूत्र में अर्जुन माली के मोगरपाणी यक्ष की पुष्प पूजाधिकार में 'पुष्पं चणं करेई' शब्द क्यों लेते? वहाँ भी यह महिया शब्द ही लेना चाहिये था? और सूत्रकार को लोगस्स के पाठ में पुष्प पूजा कहना अभिष्ट होता तो 'पुष्पं चणं करेमि' ऐसा स्पष्ट पाठ क्यों नहीं लेते? महिया शब्द जो कि पुष्प के साथ कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखता है क्यों लेते?
(२) महिया शब्द चतुर्विंशतिस्तव का है और स्तव तो साधु भी करते हैं, वह भी दिन में कम से कम दो बार तो अवश्य ही, अब
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