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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
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क्योंकि यह ‘महिया' शब्द 'चतुर्विंशतिस्तव' (लोगस्स) का है, इस स्तव से चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की जाती है, यह संपूर्ण पाठ और इसका एक-एक वाक्य स्तुति से ही भरा है, इसके किसी पी शब्द से किसी अन्य द्रव्य से पूजा करने का अर्थ नहीं निकलता, केवल मन, वाणी, शरीर द्वारा ही भक्ति करने का यह सारा पाठ है। अब यह महिया शब्द जहाँ आया है उसके पहले के दो शब्द और लिखकर इसका सत्य अर्थ बताया जाता है -
कित्तिय वंदिय महिया कित्तिय-वाणी द्वारा कीर्ति (स्तुति) करना वंदिय-शरीर द्वारा वन्दन करना, महिया-मन द्वारा पूजा करना,
इस प्रकार तीनों शब्दों का मन, वचन और शरीर द्वारा भक्तिकरने का अर्थ होता है, यदि महिया शब्द से फूलों से पूजा करने का कहोगे तो मन द्वारा भाव पूजा करने का दूसरा कौनसा शब्द है? . और जब सारा लोगस्स का पाठ ही अन्य द्रव्यों से प्रभु भक्ति करने की अपेक्षा नहीं रखता तब अकेला महिया शब्द किस प्रकार अन्य द्रव्यों को स्थान दे सकता है? वैसे तो आप पुष्पादिभिः के साथ 'जलादिभिः' 'चंदनादिभिः' 'आभूषणादिभिः धुपादिभिः' मनमाना अर्थ लगा सकते हो इसमें आपको रोक ही कौन सकता है? किन्तु इस प्रकार मनमानी धकाने में कुछ भी लाभ नहीं है, उल्टा व्यर्थ में हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है, जिस से हानि अवश्य है। सरल भाव से सोचने पर ज्ञात होगा कि मूल में मात्र ‘महिया' शब्द ही है, जिसका अर्थ पूजा होता है अब यह पूजा कैसी और किस प्रकार की
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