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१०४ क्या पुष्पों से पूजा पुष्पों की दया है? ****************************************** को पुण्य, झूठ को सत्य, खोटे को खरा, कहने वाले तो स्पष्ट सतरहवें पाप स्थान का सेवन (जानबूझकर माया से झूठ बोलना) करने के साथ अन्य जीवों को अठारहवें पाप स्थान में धकेलते हैं और आप भी इसी अन्तिम प्रबल पाप स्थान के स्वामी बन जाते हैं। हजारों भद्र लोगों को भ्रम में डालकर मिथ्या युक्तियों द्वारा उनकी श्रद्धा को भ्रष्ट करने व उन्हें उन्मार्ग गामी बनाने वाले संसार में नाम धारी त्यागी लोग जितने हैं, उतने दूसरे नहीं। ___ अब इन लोगों के बताये हुए “महिया" शब्द पर विचार करते हैं -
आवश्यक हरिभद्रसूरि की वृत्ति वाले में यह स्पष्ट उल्लेख है कि-"महिया" शब्द पाठान्तर का है, मूल पाठ तो है "मइआ" जिसका अर्थ होता है “मेरे द्वारा" (मेरे द्वारा वंदन स्तुति किये हुए) मूर्तिपूजक वृत्तिकार लिखते हैं कि -
'मइआ' - मयका, महिया इति च पाठान्तरं'
जबकि मूर्तिपूजक समाज के मान्य और लगभग १२०० सौ वर्षों के पूर्व हो गये ऐसे आचार्य ही इस 'महिया' शब्द को पाठान्तर मानते हैं, तब ऐसी हालत में इस विषय पर अधिक उहापोह करने की आवश्यकता ही नहीं रहती।
जो ‘महिया शब्द हरिभद्रसूरि के समय' तक पाठान्तर में माना जाता था वह पीछे के आचार्यों द्वारा ‘मइआ' को मूल से हटाकर स्वयं मूल रूप बन गया।
फिर भी हम प्रश्नकार के संतोष के लिए थोड़ी देर के वास्ते 'महिया' शब्द को मूल का ही मान लें तो भी इस शब्द का अर्थ - पुष्पादि से पूजा करना ऐसा आगम सम्मत नहीं हो सकता, क्योंकि....।
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