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क्या पुष्पों से पूजा पुष्पों की दया है?
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पर उन जीवों की दया कैसे हो सकती है ? हमारी हिंसा तो हिंसा और साथ ही निंदनीय और आपकी हिंसा दया और सराहनीय यह कहां का न्याय है? तब आप क्या उत्तर देंगे ? क्या आपको वहाँ अधो दृष्टि नहीं करनी पड़ेगी?
क्या कभी सरल बुद्धि से यह भी सोचा कि फूल भले ही भोग के लिए तोड़े जायं या इत्र फूलेलादि के लिए या भले ही पूजा के लिए, उनकी हत्या को अनिवार्य है, हत्या होने के बाद भले ही उनसे शय्या सजावें, हार बनावें या पूजा के काम में लेवें, उन्हें तो जीवन से हाथ धोना ही पड़ा न? पूजा या भोग के लिए तोड़ने में उन्हें कष्ट तो समान ही होता है, दोनों में अत्यन्त दु:ख के साथ मृत्यु निश्चित ही है फिर इसमें दया हुई ?
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पुष्पों से पूजा करने का उपदेश और आदेश देने वाले श्रमण अपने प्रथम और तृतीय महाव्रत का स्पष्ट भंग करते हैं। यदि इसमें संदेह हो तो पुष्प पूजा में दया मानने वाले आपके विजयानन्दसूरिजी ही हिंदी जैन तत्त्वादर्श पृ० ३२७ में फल, फूल, पत्रादि तोड़ने को जीव अदत्त कहते हैं, देखिये -
'दूसरा सचित्त वस्तु अर्थात् जीव वाली वस्तु फूल, फल, बीज, गुच्छा, पत्र, कंद, मूलादिक तथा बकरा, गाय, सुअरादिक इनको तोड़े, छेदे, भेदे, काटे सो जीव अदत्त कहिये, क्योंकि फूलादि जीवों ने अपने शरीर के छेदने भेदने की आज्ञा नहीं दीनी है, जो तुम हमको छेदो भेदो, इस वास्ते इसका नाम जीव अदत्त है।'
विजयानंदसूरिजी के उक्त सत्य कथनानुसार पत्र फूलादि का तोड़ना जीव अदत्त है और अदत्त ग्रहण तीसरे महाव्रत का भंगकर्त्ता है, इसके सिवाय प्राणी हिंसा होने से प्रथम अहिंसा व्रत का भी नाश होता
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