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श्री लोकाशाह मत - समर्थन
जिस त्यागी वर्ग के लिए त्रिकरण, त्रियोग से हिंसा करने, कराने, अनुमोदने का निषेध किया गया, जिन त्यागी श्रमणों ने स्वयं ईश्वर और गुरु साक्षी से किसी भी करण योग से हिंसा नहीं करने की स्पष्ट प्रतिज्ञा ली, वही त्यागी वर्ग पक्ष व्यामोह में पड़कर अपने कर्त्तव्य अपनी प्रतिज्ञा को ठोकर मारकर प्रभु की पूजा के नाम पर अगणित निरपराध जीवों की हिंसा करने का गला फाड़-फाड़ कर उपदेश - आदेश दे, यह कितनी लज्जा की बात हैं ?
क्या जिन मूर्ति को साक्षात् जिन समान मानने वाले अपनी प्रभु विरोधिनी पूजा के जरिये होते हुए प्रभु के अपमान को समझ कर सत्यपथ गामी बनेंगे ?
वास्तव में तो मूर्ति साक्षात् के समान हो ही नहीं सकती जबकि मृतकलेवर भी जीवित की स्थान पूर्ति नहीं कर सकता, इसीलिए जलाकर या पृथ्वी में गाड़ कर नष्ट कर दिया जाता है, तब पत्थर या काष्ट की मूर्ति अथवा चित्र क्या साक्षात् की समानता करेंगे? अतएव सरल बुद्धि से विचार कर मान्यता शुद्ध करनी चाहिए ।
३०. समवसरण और मूर्ति
प्रश्न - तीर्थंकर समवसरण में बैठते हैं तब अन्य दिशाओं में उनकी तीन मूर्तियाँ देवता रखते हैं उन मूर्तियों को लोग वन्दना नमस्कार करते हैं, इस हेतु से तो मूर्ति पूजा सिद्ध हुई ?
उत्तर - उक्त कथन भी आगम प्रमाण रहित और मिथ्या है। भगवान् समवसरण में चतुर्मुख दिखाई देते हैं ऐसा जो कहा जाता है उसका खास कारण तो भामण्डल का प्रकाश ही पाया जाता है ।
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