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६४ क्या जिन मूर्ति जिन समान है? ********************************************** अनर्थ होने की संभावना है। अतएव यह क्रिया आवश्यक और अनिवार्य होने से की जाती है इसमें धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है।
इसके सिवाय जो बहुमान किया जाता है वह शव का नहीं पर शव होने के पूर्व शरीर में रहने वाले संयमी गुरु की आत्मा का है और यह क्रिया केवल व्यावहारिक कर्तव्य का पालन करने के लिए ही होती है। संसार में भी जो व्यक्ति अधिक जन प्रिय, पूज्य या मान्य होगा, बहुतों का नेता होगा, उसके मरने पर उसके शव की अंतिम क्रिया भी बहुमान और पुष्कल द्रव्य व्यय कर की जायगी उसमें जो बहुमान होगा वह उस शव का ही नहीं किन्तु उस शव का कुछ समय पूर्व जो एक उच्च आत्मा से सम्बन्ध रहा था, उस आत्मा के ही बहुमान के कारण शरीर से उसके निकल जाने पर भी शव का मान होता है, बस इसी प्रकार हम भी हमारे गुरु के मृत शरीर की अंतिम क्रिया करते हैं और यही मान्यता रखते हैं कि यह क्रिया व्यावहारिक है किन्तु धार्मिक नहीं। अतएव व्यावहारिक और आवश्यक क्रिया का धार्मिक विषय में जोड़ देना अनुचित है, इस प्रकार द्रव्य निक्षेप वन्दनीय नहीं हो सकता। २९. क्या जिन मूर्ति जिन समान है?
प्रश्न - जिन प्रतिमा जिन समान है ऐसा सूत्र में कहा है, फिर आप क्यों नहीं मानते?
उत्तर - उक्त कथन भी सत्य से परे है। आश्चर्य तो इस बात का है कि जब मूर्ति पूजा करने की ही प्रभु आज्ञा नहीं, तब यह प्रश्न ही कैसे उपस्थित हो सकता है? वास्तव में यह कथन हमारे मूति पूजक बन्धुओं ने अतिशयोक्ति भरा ही क्रिया है। इसी प्रकार
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