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________________ श्री लोकाशाह मत-समर्थन ६३ 李**************************************** * नहीं रहा, इससे विपरीत जहां गुण वृद्धि होती है वह भूत और वर्तमान दोनों काल में वन्दनीय ही होता है। इस विषय में यदि आप सांसारिक उदाहरण भी देखना चाहें तो बहुत मिल सकते हैं अधिक नहीं केवल एक ही उदाहरण यहां दिया जाता है, देखिये - वर्तमान में जितने पदच्युत राजा और सम्राट हैं वे पहले तो प्रायः युवराज रहे होंगे और युवराज के बाद राजा या सम्राट बने। जो प्रजा युवराज अवस्था में उन्हें मान देती थी, वही राजा होने पर भी मान देती रही, बल्कि पहले से भी अधिक किन्तु काल चक्र के फेर से वे राज्यच्युत हो गये तो युवराज अवस्था वाला आदर भी उनके भाग्य में नहीं रहा, आज उनकी क्या हालत है यह तो प्रायः सभी जानते हैं। यहां निर्विवाद सिद्ध हुआ कि मान पूजा गुणों की ही अपेक्षा रखती है, इसलिये गुण वृद्धि रूप सिद्धावस्था को लेकर गुण रहित द्रव्य निक्षेप के साथ उसकी तुलना करके सामान्य द्रव्य निक्षेप को वन्दनीय ठहराना किसी प्रकार योग्य नहीं है। २८. साधु के शव का बहुमान प्रश्न - मृतक माधु के शव की अंतिम क्रिया आप बहुमान पूर्वक करते हैं उसमें धन भी खूब खर्च करते हैं तो भी क्या यह द्रव्य निक्षेप को वन्दन नहीं हुआ? उत्तर - साधु के शव की अंतिम क्रिया जो हम करते हैं यह धर्म समझ कर नहीं किन्तु अपना कर्त्तव्य समझ कर करते हैं, शव की अंतिमक्रिया करना अनिवार्य है, नहीं करने से कई प्रकार के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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