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मरीचि वंदन
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अन्तकृत दशांग में लिखा कि बाइसवें तीर्थंकर प्रभु ने श्री कृष्ण वासुदेव को आगामी चौबीसी में बारहवें तीर्थंकर होने का भविष्य सुनाया, यह सुनकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए जंघा पर कर - स्फोट कर सिंहनाद किया। इससे अनुमान होता है कि उस समय समवसरण स्थित चतुर्विध संघ तो ठीक पर कई योजन दूर तक यह आवाज पहुंची होगी और समवसरण में तो सभी को इसका कारण मालूम हो गया कि - यह ध्वनि श्रीकृष्ण ने भविष्य कथन सुनकर प्रसन्नता से की है। जब जनता और प्रभु के साधु साध्वी यह जान गये कि श्रीकृष्ण भविष्य में प्रभु की तरह ही तीर्थंकर होंगे। तब सभी श्रमणों aa और गृहस्थों को चाहिए था कि वे भी आपके भरतेश्वर की तरह कृष्ण को वन्दना नमस्कार करते ? क्योंकि वे भी तो मरीचि की तरह द्रव्य तीर्थंकर थे ? किन्तु जब हम अन्तकृतदशांग देखते हैं, तब उसमें सिंहनाद आदि का तो वर्णन है पर वन्दनादि के लिए तो बिलकुल मौन ही पाया जाता है। यही हाल ठाणांग सूत्र के नवमस्थान में श्रेणिक के भविष्य कथन का है । जब तीर्थंकर भाषित सूत्रों में यह बात प्रकरण से भी नहीं मिलती तो अन्य ग्रंथों में कैसे और कहां से आई और त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र के रचयिता ने किस दिव्य ज्ञान द्वारा यह सब जाना ? किसी भी बात को कल्पना के जरिये विद्वत्तापूर्वक रच डालने से ही वह ऐतिहासिक नहीं हो सकती। इस प्रमाण के बाधक कुछ उदाहरण भी दिये जाते हैं।
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(क) कोई बुनकर कपड़ा बुनने को यदि सूत लाया है उस सूत से वह कपड़ा बनावेगा, वर्तमान में वह कपड़ा नहीं पर सूत ही है । फिर भी वह बुनकर यदि सूत को ही कपड़े के मूल्य में बेंचना चाहे या खरीदने वाले से उस सूत को देकर वस्त्र का मूल्य लेना चाहे तो
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