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श्री लोकाशाह मत - समर्थन
उसे निराश होना पड़ता है। क्योंकि वह वर्तमान में सूत है उससे वस्त्र के दाम नहीं मिल सकते । इसी प्रकार भविष्य में उत्पन्न होने वाले गुण को लक्ष्य कर वर्तमान में उन उत्तम गुणों से रहित व्यक्ति को वैसा मान नहीं दिया जा सकता ।
(ख) कोई शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिये एक पाषाण खण्ड नाया है उस पाषाण की वह मूर्ति बनावेगा उस पर काम भी करने लग गया है किन्तु अभी तक मूर्ति पूर्ण रूप से बनी नहीं है, इतने में ही कोई मूर्ति पूजक आकर उससे मूर्ति मांगे, तब वह शिल्पकार यदि कह दे कि - यह अपूर्ण मूर्ति ही ले लो तो क्या वह मूर्तिपूजक उस अपूर्ण मूर्ति के पूरे दाम देकर खरीदेगा ? नहीं यद्यपि वह भविष्य मैं पूर्ण रूप से ठीक बन जायगी पर वर्तमान में अपूर्ण है, इसलिए व्यवहार में भी उसका पूरा मूल्य नहीं मिल सकता, तो धर्म कार्य में द्रव्य निक्षेप वन्दनीय पूजनीय कैसे हो सकता है?
(ग) एक गाय की छोटी सी बछिया है, जो भविष्य में गाय बन कर दूध देगी, किंतु हमारे मूर्ति पूजक प्रश्नकार के मतानुसार उस बछिया से ही जो कोई दूध प्राप्त करने की इच्छा से क्रिया करे, तो उस जैसा मूर्ख शिरोमणि संसार में और कौन हो सकता है ? जब छोटी बछिया यद्यपि गाय के द्रव्य निक्षेप में है किन्तु वर्तमान में दूध देने रूप भाव निक्षेप की कार्य साधक नहीं होती तब गुण शून्य द्रव्य निक्षेप वंदनीय पूजनीय किस प्रकार माना जा सकता है ?
(घ) २४ वें प्रश्नोत्तर के पांचों उदाहरण भी यहां प्रकरण संगत हैं।
ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं, सुज्ञ जनता इन उदाहरणों पर शान्त चित्त से विचार करेगी तो मालूम होगा कि देव्य निक्षेप को भाव सदृश मानना वास्तव में बुद्धिमत्ता नहीं है ।
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