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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
८६ ***************************************** छेदन कर रहे हैं, अतएव यह स्पष्ट हो चुका कि-द्रव्य निक्षेप वंदनीय पूजनीय नहीं है। और जब द्रव्य निक्षेप (जो कि भाव का अधिकारी किसी समय था, या होगा) भी वंदनीय पूजनीय नहीं तो मनःकल्पित स्थापना-मूर्ति अवंदनीय हो, इसमें कहना ही क्या है? यहां तो शंका को स्थान ही नहीं होना चाहिये।
३३. मरीचि वंदन प्रश्न - त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र में लिखा है कि प्रथम जिनेश्वर ने जब यह कहा कि - "मरीचि इसी अवसर्पिणी काल में अंतिम तीर्थंकर होगा" यह सुनकर भरतेश्वर ने उसके पास जाकर उसे वन्दना नमस्कार किया, इससे तो आपको भी द्रव्य निक्षेप वंदनीय स्वीकार करना पड़ेगा, क्या इसमें भी कोई बाधा है?
उत्तर - हां, यह मरीचि वन्दन का कथन भी आगम प्रमाण रहित और अन्य प्रमाणों से बाधित होने से अमान्य है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि - यह "त्रिशष्ठिशलाका पुरुष वरित्र 'जो कि श्री हेमचन्द्राचार्य का बनाया हुआ है आगम की तरह मान्य कैसे हो सकता है? जबकि इसके रचयिता में सिवाय मति, श्रुति के कोई भी विशिष्ट ज्ञान नहीं था तो उन्होंने तीसरे आरे की जात पंचम आरे के एक हजार से भी अधिक वर्ष बीत जाने पर कैसे जानली? यहां हम विषयान्तर के भय से अधिक नहीं लिखकर "त्रिशष्ठिशलाका पुरुष चरित्र" की समालोचना एक स्वतंत्र ग्रंथ के लिए छोड़ कर इतना ही कहना चाहते हैं कि - ऐसे ग्रंथों के प्रमाण यहां कुछ भी कार्य साधक नहीं हो सकते, जो ग्रंथ उभय मान्य हो वही प्रमाण में रक्खे जाने चाहिए अन्यथा प्रमाणदाता को विफल मनोरथ होना पड़ता है।
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