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हुण्डी से मूर्ति की साम्यता
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नहीं करता, उसी प्रकार प्रभु मूर्ति की रुचि वाले के लिए देखने तक ही हो सकती है, ऐसी हालत में मूर्ति की सीमातीत वन्दना पूजनादि रूप भक्ति क्यों की जाती है ? ऐसा करना आप के उक्त उदाहरण से घट सकता है क्या? अतएव यह उदाहरण भी मूर्ति पूजा में विफल ही रहा। २०. हुण्डी से मूर्ति की साम्यता
प्रश्न - जब कोई धनी व्यापारी अपनी किसी विदेश स्थित दुकान के नाम किसी मनुष्य को हुण्डी लिख दे तब वह मनुष्य उस हुण्डी के जरिये लिखित रुपये प्राप्त कर सकता है, बताईये यह स्थापना निक्षेप का प्रभाव नहीं तो क्या है? हुण्डी में जितने रुपये देने के लिखे हैं वह रुपयों की स्थापना नहीं है क्या?
उत्तर - उक्त कथन स्थापना निक्षेप का उल्लंघन कर गया है, सर्व प्रथम यह ध्यान में रखना चाहिये कि स्थापना निक्षेप साक्षात् की मूर्ति चित्र अथवा कोई पाषाण खण्ड आदि है, जिसमें साक्षात् की स्थापना की गई हो आपने इस प्रश्न में साक्षात् को ही स्थापना का रूप दे डाला है, क्योंकि हुण्डी स्वयं भाव निक्षेप में है, हुण्डी लेने वाले को उसमें लिखे हुए रुपये चुकाने पर ही प्राप्त हुई है, और हुण्डी जब भी शिकरेगी कि उसका भाव (लिखने और शिकारने वाले साहूकार) सत्य हों।
यदि हुण्डी का भाव सत्य नहीं हो, लिखने शिकारने वाले अयोग्य हों तो उस हुण्डी का मूल्य ही क्या? यों तो कोई राह चलता ले भग्गु भी लिख डालेगा, तो क्या वह भी सच्ची हुण्डी की तरह कार्य साधक हो सकेगी?
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