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स्त्री-चित्र और साधु
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का फोटू है मुझे पसन्द नहीं, कोई अच्छा सुन्दर फोटू वाला व लीजिये। भले ही आप वस्त्र के गुण दोष को जानकर हलका वस्न ना लेंगे, किन्तु नौका विहारिणी के सुन्दर और आकर्षक चित्र को ले की तो आप भी इच्छा करेंगे। आज प्रचार के विचार से वस्त्रों पर भ और अश्लील चित्र भी आने लगे हैं और मैंने ऐसे कई मन चले मनुष को देखे हैं जो मोहक चित्र के कारण ही एक दो आने अधिक देव वस्त्र खरीद लेते हैं।
इस प्रकार संसार में किसी भी समय कामराग की अपेक्ष वैराग्य अधिक संख्या के संख्यक मनुष्यों में नहीं रहा भूतकाल किसी भी युग में (काल) ऐसा समय नहीं आया कि-जब मोहराग विराग अधिक प्राणियों में रहा हो।
तीर्थंकर मूर्ति यदि नियमित रूप से सभी के हृदय वैराग्योत्पादक ही हो तो आये दिन समाचार पत्रों में ऐसे समाच प्रकाशित नहीं होते कि - "अमुक ग्राम में अमुक मन्दिर की मूर्ति आभूषण चोरी में चले गये, धातु की मूर्ति ही चोर ले उड़े, अम जगह मूर्ति खण्डित कर डाली गई, आदि इन पर से सिद्ध हुआ। वीतराग की मूर्ति से वैराग्य होना निमित्त नहीं है। वैराग्य भाव तो रहा पर उल्टा यह भी पाया जाता है कि चोरी और द्वेष जैसे दुष्ट की मूर्ति ही उत्पादिका बन जाती है, क्योंकि उसके बहुमूल्य आभू या स्वयं धातु मूर्ति आदि ही चोर को चोरी करने की प्रेरणा करते बहुमूल्यत्व के लोभ को पैदा कर मूर्ति चोरी करवाती है और आततायी के मन में मूर्ति तोड़ने के भाव उत्पन्न कर देती है। तो मूर्ति निन्दनीय भावोत्पादिका भी ठहरी।
अतएव सरल बुद्धि से यही समझो कि स्त्री चित्र से रागो
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