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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
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क्या, कागज या मिट्टी की बनी हुई रोटी तथा शिल्पकारों द्वारा बनी हुई पाषाण की बदाम, खारक आदि वस्तुएं खा लेंगे? नहीं, यह तो नहीं करेंगे। फिर तो आपकी मूर्ति पूजकता अधूरी ही रह गई?
प्रिय बंधुओ! सोचो और हठ को छोड़कर सत्य स्वीकार करो इसी में सच्चा हित है। अन्यथा पश्चात्ताप करना पड़ेगा।
१८. पति का चित्र प्रश्न - जिसका भाव वन्दनीय है उसकी स्थापना भी वन्दनीय है, जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री अपने पति की अनुपस्थिति में पति के चित्र को देख कर आनन्द मानती है, पति मिलन समान सुखानुभव करती है, उसी प्रकार प्रभु मूर्ति भी हृदय को आनन्दित कर देती है, अतएव वन्दनीय है, इसमें आपका क्या समाधान है?
- उत्तर - यह तो हम पहले ही बता चुके हैं कि - चित्र की मर्यादा देखने मात्र तक ही है इससे अधिक नहीं। इसी प्रकार पति मूर्ति भी देखने मात्र तक ही कार्य साधक है, इससे अधिक प्रेमालाप, या सहवास आदि सुख जो साक्षात् से मिल सकता है मूर्ति से नहीं। पतिव्रता स्त्री को पति की अनुपस्थिति में यदि चित्र से ही प्रेमालाप आदि करते देखते हों या चित्र से विधवाएं सधवापन का अनुभव करती हों तब तो मूर्ति पूजा भी माननीय हो सकती है, किन्तु ऐसा कहीं भी नहीं होता फिर मूर्ति ही साक्षात् की तरह पूजनीय कैसे हो सकती है? अतएव जिसका भाव पूज्य, उसकी स्थापना पूज्य मानने का सिद्धान्त भी प्रमाण एवं युक्ति से बाधित सिद्ध होता है।
यहां कितने ही अनभिज्ञ बन्धु यह प्रश्न कर बैठते हैं कि - 'जब स्त्री पतिचित्र से मिलन सुख नहीं पा सकती तो केवल पति,
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