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स्त्री-चित्र और साधु
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पति इस प्रकार नामस्मरण करने से ही क्या सुख पा सकती है? इससे तो नाम स्मरण भी अनुचित ठहरेगा?' इस विषय में मैं इन भोले भाइयों से कहता हूं कि-जिस प्रकार चित्र से लाभ नहीं, उसी प्रकार मात्र वाणी द्वारा नामोच्चारण करने से भी नहीं। हां भाव द्वारा जो पति की मौजूदगी के समय की स्थिति, घटना एवं परस्पर इच्छित सुखानुभव का स्मरण करने पर वह स्त्री उस समय अपने विधवापन को भूलकर पूर्व सधवापन की स्थिति का अनुभव करने लगती है, उस समय उसके सामने भूतकालीन सुखानुभव की घटनाएं खड़ी हो जाती हैं और उनका स्मरण कर वह अपने को उसी गये गुजरे जमाने में समझ कर क्षणिक प्रसन्नता प्राप्त कर लेती है। इसीलिये तो ब्रह्मचारी को पूर्व के काम भोगों का स्मरण नहीं करने का आदेश देकर प्रभु ने छट्ठी बाड़ बनादी है। अतएव यह समझिये कि जो कुछ भी लाभ हानि है वह भाव निक्षेप से ही है, स्थापना से नहीं। तिस पर भी जो चित्र से राग भाव होने का कहकर मूर्तिपूजा सिद्ध करना चाहते हो, तो उसका समाधान उन्नीसवें (अगले) प्रश्न के उत्तर में देखिये -
१९. स्त्री-चित्र और साधु
प्रश्न - जैसे स्त्री चित्र देखने से काम जागृत होता है और इसी लिये ऐसे चित्रमय मकान में साधु को उतरने की मनाई की गई है, वैसे ही प्रभु चित्र या मूर्ति से भी वैराग्य प्राप्त होता है, फिर आप मूर्ति पूजा क्यों नहीं मानते?
उत्तर - स्त्री चित्र से काम जागृत हो उसी प्रकार प्रभु मूर्ति से वैराग्य उत्पन्न होने का कहना, यह भी असंगत है। क्योंकि - स्त्री चित्र से विकार उत्पन्न होना तो स्वतः सिद्ध और प्रत्यक्ष है। .
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