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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
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भी बुद्धिशाली मनुष्य या स्वयं मूर्तिपूजक ही वन्दनीय, पूजनीय नहीं मानते, ऐसी सूरत में गुणशून्य स्थापना निक्षेप को वन्दनीय पूजनीय मानने वाले किसप्रकार बुद्धिमान कहे जा सकते हैं।
हम जो नाम लेकर वन्दना नमस्कार रूप क्रिया करते हैं, वह अनन्तज्ञानी कर्म वृन्द के छेदक जगदुपकारी, शुक्लध्यान में मग्न ऐसे तीर्थंकर प्रभु की तथा उनके गुणों की जब हम ऐसे विश्वपूज्य प्रभु का ध्यान करते हैं तब हमारी कल्पनानुसार प्रभु हमारे नेत्रों के सम्मुख दिखाई देते हैं, हम अतिशय गुणयुक्त प्रभु के चरणों में अपने को समर्पण कर देते हैं, भक्ति से हमारा मस्तक प्रभु चरणों में झुक जाता है और यह सभी क्रिया भाव निक्षेप में है, ऐसे भाव युक्त नाम स्मरण को नाम निक्षेप में गिना और इस ओट से मूर्ति पूजा को उपादेय कहना यह स्पष्ट अज्ञता है।
१७ - शक्कर के खिलौने
प्रश्न - शक्कर के बने हुए खिलौने-हाथी, घोड़े, गाय, भैंस, ऊंट, कबूतर आदि को आप खाते हैं या नहीं? यदि उनमें स्थापना होने से नहीं खाते हो तो स्थापना निक्षेप वन्दनीय सिद्ध हुआ या
नहीं?
उत्तर - हम गाय, भैंस आदि की आकृति के बने हुए शक्कर के खिलौने नहीं खाते, क्योंकि वह स्थापना निक्षेप है, स्थापना निक्षेप को मानने वाला, उस स्थापना को न तो तोड़ता है और न स्थापना की सीमा से अधिक महत्त्व ही देता है। यदि ऐसे स्थापना निक्षेप युक्त खिलौने को कोई खावे या तोड़े तो वह स्थापना निक्षेप का भङ्गकर्ता ठहरता है, और जो कोई उस स्थापना को सीमातीत
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