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स्थापना सत्य ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※
कुछ बच सकते हैं। इसी तरह यह आप ही का दिया हुआ उदाहरण आपकी मूर्ति पूजा में बाधक सिद्ध हुआ। अतएव आपको जरा सरल हृदय से विचार कर सत्य मार्ग को ग्रहण करना चाहिये।
१५. स्थापना सत्य प्रश्न - शास्त्र में स्थापना सत्य कहा गया है, उसे आप मानते हैं या नहीं?
उत्तर - हां, स्थापना सत्य को हम अवश्य मानते हैं उसका सच्चा आशय यही है कि स्थापना को स्थापना, मूर्ति को मूर्ति, चित्र को चित्र मानना। इसके अनुसार हम मूर्ति को मूर्ति मानते हैं, किन्तु स्थापना सत्य का जो अर्थ आप समझाना चाहते हैं कि स्थापना मूर्ति ही को साक्षात् मानकर वन्दन पूजन आदि किये जायं, यह अर्थ नहीं होता। इस प्रकार का मानने वाला सत्य से परे है, आपको यह प्रमाण तो वहां देना चाहिये जो मूर्ति को मूर्ति ही नहीं मानता हो। इस तरह यहां आपकी उक्त दलील भी मनोरथ सिद्ध करने में असफल ही रही। १६. नाम निक्षेप वन्दनीय क्यों?
प्रश्न - भाव निक्षेप को ही वन्दनीय मानकर अन्य निक्षेप को अवन्दनीय कहने वाले नाम स्मरण या नाम निक्षेप को वंदनीय सिद्ध करते हैं या नहीं?
उत्तर - यह प्रश्न भी अज्ञानता से ओत प्रोत है, हम नाम निक्षेप को वन्दनीय मानते ही नहीं, यदि हम नाम निक्षेप को ही वन्दनीय मानते तो ऋषभ, नेमि, पार्श्व, महावीर आदि नाम वाले मनुष्यों को जो कि तीर्थंकरों के नाम निक्षेप में हैं उनको वन्दना नमस्कार आदि करते, किन्तु गुणशून्य नाम निक्षेप को हम या कोई
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