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________________ श्री लोकाशाह मत - समर्थन ************************************** सामने कोई उच्च धार्मिक पुस्तक रख दी जाय तो वह मात्र पुड़िया बान्धने के अन्य किसी भी काम में नहीं ले सकता। अनसमझ लोगों की वह बात सभी जानते हैं कि जब भारत में रेलगाड़ी का चलना प्रारम्भ हुआ तब वे लोग उसे वाहन नहीं समझ कर देवी जानते थे । साक्षात् वीर प्रभु को देखकर अनेक युवतियां उनसे रतिदान की प्रार्थना करती थी, बच्चे डर के मारे रो रो कर भागते थे, अनार्य लोग प्रभु को चोर समझ कर ताड़ना करते थे, जब मूर्ति से ही ज्ञान प्राप्त होता है, तो साक्षात् को देखने पर ज्ञान के बदले अज्ञान - विपरीत ज्ञान क्यों हुआ? साक्षात् धर्म के नायक और परम योगीराज प्रभु महावीर को देख लेने पर भी वैराग्य के बदले राग एवं द्वेष भाव क्यों जागृत (पैदा) हुए? यह ठीक है कि जिस प्रकार पढ़े लिखे मनुष्य नक्शा देखकर इच्छित स्थान अथवा रेल्वे लाईन सम्बन्धी जानकारी कर लेते हैं । यानी नक्शा आदि पुस्तक की तरह ज्ञान प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं। किन्तु यदि कोई विद्वान् नक्शा देख कर इच्छित स्थान पर पहुंचने के लिये उसी नक्शे पर दौड़ धूप मचावे, चित्रमय सरोवर में जल विहार करने की इच्छा से कूद पड़े, चित्रमय गाय से दूध प्राप्त करने की कोशिश करे, तब तो मूर्ति भी साक्षात् की तरह पूजनीय एवं वंदनीय हो सकती है, पर इस प्रकार की मूर्खता कोई भी समझदार नहीं करता, तब मूर्ति ही असल की बुद्धि से कैसे पूज्य हो सकती है ? ६६ जिस प्रकार नक्शे को नक्शा मानकर उसकी सीमा देखने मात्र तक ही है उसी प्रकार मूर्ति भी देखने मात्र तक ही (अनावश्यक होते हुए भी) सीमित रखिये, तब तो आप इस हास्यास्पद प्रवृत्ति से बहुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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