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__ श्री लोंकाशाह मत-समर्थन
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मूर्ति से ये अपनी प्रभु पूजा नहीं कर सकते? किन्तु यह सभी झूठा बवाल है। मूर्ति के जरिये से ही पूजा होने का कहना भी झूठ है। प्रभु पूजा में मूर्ति फोटो आदि की आवश्यकता ही नहीं है, वहां तो केवल शुद्धान्तःकरण तथा सम्यग्ज्ञान की आवश्यकता है। जिसको सम्यग्ज्ञान है, यह सम्यक् क्रिया द्वारा आत्मा और परमात्मा की परमोत्कृष्ट पूजा कर सकता है। मूर्ति पूजा कर उसके द्वारा प्रभु को पूजा पहुंचाने वाले वास्तव में लकड़ी या पाषाण के घोड़े पर बैठकर दुर्गम मार्ग को पार कर इष्ट स्थान पर पहुंचने की विफल चेष्टा करने वाले मूर्खराज की कोटि से भिन्न नहीं है। __इतने कथन पर से पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि मूर्ति पूजा वास्तव में आत्म कल्याण में साधक नहीं किन्तु बाधक है, जब कियह प्रत्यक्ष सिद्ध हो चुका कि मूर्ति पूजा के द्वारा हमारा बहुत अनिष्ट हुआ और होता जा रहा है फिर ऐसे नग्न सत्य के सम्मुख कोई कुतर्क ठहर भी नहीं सकती किन्तु प्रकरण की विशेष पुष्टि और शंका को निर्मूल करने के लिए कुछ प्रचलित खास-खास शंकाओं का प्रश्नोत्तर द्वारा समाधान किया जाता है, पाठक धैर्य एवं शांति से अवलोकन करें।
११-क्या शास्त्रों का उपयोग . करना भी मूर्तिपूजा है?
प्रश्न - शास्त्र को जिनवाणी और ईश्वर वाक्य मान कर उनको सिर पर चढ़ाने वाले आप मूर्ति-पूजा का विरोध कैसे कर सकते हैं?
उत्तर - यह प्रश्न भी वस्तुस्थिति की अनभिज्ञता का परिचय
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