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________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि ************************************** को पूर्वोक्त ७-८ प्रसंगों में बाँधने का ही मान्य रख कर बाकी के समय नहीं बाँधने का निर्णय किया गया और जब शिथिलाचार अधिक बढ़ा तो केवल व्याख्यान के प्रसंग पर ही बाँधना मान कर अन्य समय के लिए उपेक्षा की गई और अब तो अधिकांश बाँधने में ही मिथ्यात्व एवं पाप मानने लगे हैं। यह सब शिथिलाचार का ही प्रभाव है। अगर समय ने पल्टा खाया, तो सम्भव है फिर मुखवस्त्रिका को अपना पूर्व स्थान इन लोगों से प्राप्त हो जाय। हमें इतिहास का प्रमाण खोजने की आवश्यकता ही क्या है? इन्हीं के ग्रन्थ बता रहे हैं कि भुवन भानु केवली, हरिबल मच्छी, हीरविजयसूरि आदि के समय मुखवस्त्रिका बाँधी जाती थी और मुँहपत्ति चर्चासार के चित्र भी बता रहे हैं कि श्रीपाल राजा के समय भी मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधी जाती थी। फिर हमें व्यर्थ के कष्ट उठाने की क्या जरूरत है? (१८) ज्ञानसुन्दरजी अर्धमागधी कोष को देखकर तो भड़क ही उठे हैं और अपनी विकृत वाणी के कुछ छींटे जैन समाज के प्रसिद्ध विद्वान्, भारत रत्न शतावधानी पण्डित मुनिराज श्री रत्नचन्द्रजी महाराज पर भी डाले हैं। परन्तु सुन्दरजी को उत्तरासंग का वह चित्र देखकर भड़कने की आवश्यकता नहीं है। इससे तो इनकी योग्यता और हठाग्रहिता का ठीक ठीक पता चल जाता है। अगर सुन्दरजी महाशय शान्त भाव से विचार करते तो इन्हें ऐसी कुतर्क करने की बुद्धि नहीं होती। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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