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मुखवस्त्रिका सिद्धि
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__ उपरोक्त प्रमाण से यह सिद्ध हो गया कि वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, धर्मकथा, प्रतिलेखना, प्रमार्जना, स्थंडिल गमन, व्याख्यान प्रसंग आदि में मुखवस्त्रिका अवश्य बाँधनी चाहिये।
• यद्यपि उक्त प्रसंगों पर बाँधना और बाकी के समय में हाथ में रखना, ऐसा लेखक का अभिप्राय हो सकता है, तथापि लेखक यह तो स्वीकार करते हैं कि “अभी यह निश्चय अपूर्ण ही है" लेखक के ये शब्द ही कह रहे हैं कि - अभी इसमें और विचार करने की आवश्यकता है। देखिये, वे शब्द "यद्यपि खास बाँधवानाँ प्रसंगोनुं चोक्खू नकी तारण कदाच आपणे न काढी शकिए" ये शब्द ही उपरोक्त प्रसंगों के सिवाय भी बाँधने की गुञ्जाइश बताते हैं।
इतने प्रसंगों पर तो बाँधना इन्हें भी स्पष्ट स्वीकार है। फिर भी ये लोग इन सब प्रसंगों पर नहीं बाँधते हैं। इससे तो यही पाया जाता है कि ये लोग मत-मोह एवं शिथिलता में पड़ कर संयम तथा चारित्र के प्रति उपेक्षा ही करते हैं *।
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*सरे बाजार कई हस्त-वस्त्री साधुओं को खुले मुँह बोलते देखा गया है अतएव ऐसे समय भी मुख-वस्त्रिका मुँह पर बाँधी रहनी चाहिए। .
तारीख १० अक्टोबर सन् १९३७ की बात है जब यह लेखक स्वयम् अहमदाबाद गया था, वहाँ अन्य दो स्वधर्मियों के साथ...गच्छ के उपाश्रय में गया, वहाँ के वृद्ध आचार्य निद्रा ले रहे थे और खुले मुंह खुरटि भर रहे थे। उस समय हमने उनके एक साधु के साथ लगभग २०-२५ मिनिट तक वार्तालाप की मगर उन महानुभाव की मुख-वस्त्रिका के दर्शन हमें उनके कमर में पहने हुए चोल पट्टक में खोंसे हुए हुआ और उस समय दूसरे एक साधु अन्य गृहस्थ से वार्तालाप कर रहे थे पर वहाँ भी हस्त वस्त्र के उपयोग का अभाव ही था। इस प्रकार मुख-वस्त्रिका की ये लोग दुर्गति करते हैं।
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