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________________ सप्रमाण सिद्धि देख लेने पर भी उनके जैन साधु होने का सहज में कोई भी अनुमान नहीं कर सकता । इससे यह सिद्ध है कि मुखवस्त्रिका जैन साधु का खास लिंग है, और वह मुँह पर रहने पर ही कार्यसाधक हो सकती है । मुँह के सिवाय इतर स्थानों पर उसका उपयोग करना दुरुपयोग ही है। १६ *** *** यहाँ हमने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दोनों कारणों को सिद्ध कर दिखाये हैं। अब हमारे प्रेमी पाठक अगले प्रकरण में मुखवस्त्रिका को मुँह पर बाँधने के सम्बन्ध में शास्त्रीय प्रमाणों का अवलोकन करें । (३) सप्रमाण सिद्धि गत प्रकरणों में मुख से निकलती हुई वायु से होने वाली वायुकायादि जीवों की हिंसा को रोकने में और जैन साधुपन का परिचय कराने में उपयोगी मुखवस्त्रिका के सम्बन्ध में विचार किया गया। अब हम पाठकों के सन्मुख मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधने के विषय में कुछ प्रमाण पेश करने के पहले, मुखवस्त्रिका शब्द पर थोडासा विचार करके उसका अर्थ बतलाने का प्रयत्न करते हैं। 'मुखवस्त्रिका' यह शब्द ही ऐसा है जो अपना अर्थ स्वयं प्रकाशित कर रहा है। जैसे " शब्द सिद्धि - मुखेस्थिता - मुखस्थिता, मुखस्थिता चासौवस्त्रिका मुखवस्त्रिका" इति शब्दानु शासनम् - अर्थात् जो वस्त्रिका मुँह पर स्थित बाँधी हुई हो उसी को मुखवस्त्रिका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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