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________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि १५ **** ********************************** प मापा तथैवेदं-रजो हरणं मुख-वस्त्रिका रूपं जीवानां रक्षणार्थ “लिङ्गार्थ' मपि। अर्थात् - ३२ अङ्गल लम्बा रज़ोहरण और उससे अर्द्ध (सोलह अङ्गल) मुख-वस्त्रिका ये जीवों की रक्षा के लिये और “लिंग' के लिए भी रक्खे जाते हैं। (२) साधु समाचारी और आवश्यक बृहद् वृत्ति आदि में मृतक साधु के मुंह पर मुख-वस्त्रिका बाँधने की विधि बताई है (जिसका उद्धरण आगे दिया जायगा) उसका तात्पर्य भी प्रकरण सम्मत है। इससे सिद्ध होता है कि मुख-वस्त्रिका जैन लिंग की द्योतक है। और यह अपना कार्य सुचारु रूप से तभी कर सकेगी जब कि यह मुँह पर बँधी होगी। क्योंकि हाथ में तो गृहस्थ लोग भी रुमाल आदि रखते ही हैं, इसलिए हाथ में रहने वाला वस्त्र मुख-वस्त्रिका के समान उपयोगी नहीं होता। एक कमरे में यदि संसार के भिन्न भिन्न सम्प्रदाय के पांचपांच साधु एकत्रित किये जायें, जिसमें पांच साधु हाथ में वस्त्र रखने वाले भी हों, और उस एकत्रित हुए साधु मण्डल में एक साधु मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधने वाला (साधुमार्गी जैन) हो, वहां किसी अन्य सामाजिक मनुष्य को लाकर उस मंडली के सामने खड़ा कर पूछा जावे कि बताओ इनमें जैन साधु कौन है? तो वह व्यक्ति जल्दी से मुखवस्त्रिका वाले जैन मुनि की ओर ही अंगूली निर्देश करेगा, क्योंकि उनकी परिचय दात्री-मुखवस्त्रिका जीव रक्षा के साथ साथ जैन साधुत्त्व को स्पष्ट बता रही है। इसी से वह व्यक्ति शीघ्र जान लेता है कि यही जैन साधु है। ऐसे प्रश्न के उत्तर में तो हाथ में वस्त्र रखने वालों को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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