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________________ [11] 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 धन्यवाद मान्यवर जुगराजजी रतनलाल जी साहब नाहर! आपने इस पुस्त के प्रथम संस्करण के प्रकाशन में द्रव्य सहायता प्रदान कर जो समाज सेवा की है, वह वास्तव में प्राप्त सम्पत्ति का सदुपयोग ही है। आये दिन धार्मिक प्रवृत्ति पर विरोधी लोग आक्रमण कर, भद्र जनता को भ्रम में डालकर श्रद्धा भ्रष्ट करने का प्रयत्न करते रहते हैं। किन्तु आप महानुभाव ने सत् प्रवृत्ति एवं सम्यक्त्व का रक्षण कर भद्र जनता को सम्यक्त्व में स्थिर करने रूप इस निबन्ध के प्रकाशन में अर्थ सहायता प्रदान कर "स्थिरीकरण” नामक शास्त्र सम्मत षष्टम दर्शनाचार का पालन किया है और साथ में स्वसमाज रक्षण रूप महान् कार्य भी किया है। . यद्यपि आपकी भावना इस पुस्तक को अमूल्य वितरण करने की थी, किन्तु अमूल्य वितरण में पुस्तकों का दुरुपयोग भी बहुधा होता है, यह विचार कर ही अर्द्ध मूल्य रक्खा गया है, तथापि आपको ओर से तो यह पुस्तक अमूल्य ही थी, क्योंकि अर्द्ध मूल्य भी समाजोपयोगी कार्यों में ही व्यय होगा। उससे आपने अपना कोई सम्बन्ध ही नहीं रक्खा।। __ अतएव आपके इस समयोचित एवं उपयोगी दान के लिए आपको अनेकानेक धन्यवाद है। इस पुस्तक की द्वितीयावृत्ति के प्रकाशन में श्री जैन हितेच्छु श्रावक मण्डल के प्रयत्न से “भीनासर निवासी श्रीमान् सेठ बहादुरमल जी तोलाराम जी बांठिया' ने छपाई आदि का आधा खर्च अपनी तरफ से प्रदान किया है, एतदर्थ आपका भी मैं आभारी हूँ और कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। . विनीत- “रत्न" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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